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मेरे मन तुम राधे - राधे जपा करो

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उदास  न  रहा  करो  ,  मेरे  मन  तुम  राधे - राधे  जपा  करो । इधर - उधर  व्यर्थ  न  जग  में   भटका  करो , मेरे  मन  तुम  सदा  श्रीचरणों  में  रहा  करो  ।। न  लोभ   ईर्ष्या  कोई  ,  न  कटुता  में   रहा  करो  मेरी  जिह्वा  तुम मिश्री  से  मीठा  नाम  राधे - राधे  बोला  करो ।।

शरद पूर्णिमा का चाँद

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शरद पूर्णिमा का चाँद  उतरी चाँदनी सागर तल में धीरे - धीरे प्रशांत जल में समाती शुभता का रुप कोई  श्वेत चंदन वर्ण गमक उठी भावों की महक निज मन की फुलवारी सघन निविड़ के अंधियारे में ओट लिए  राग यमन का गान गुँजन करता चंचल मन के तार  देख दृश्य पार मोती का रंग एक आकार गोल कुंदक - सा चन्द्रमा