श्याम संध्या दीप जलाए
श्याम संध्या दीप जलाए अस्ताचल सूर्य सागर अंक अब विश्राम पाये दिन का ताप उतरा शीतल हवा का झोंका धीरे से बह निकला अस्फुट ध्वनि कुछ सहज हुई निस्तब्ध शांत में एक गहन वार्ता थी
वृंदावन तट रेनू ... मन से जो पास हो । वहाँ बन्धन तुच्छ हो जाते है । सीमाएँ भी तभी तक रहती है जब तक हृदय कलुष से छूटकर प्रेमभाव की वृहत्तर भूमि प्राप्त नहीं कर लेता है और त्याग व करुणा की मृदुल हितभूमि से जब उसका संबंध स्थापित हो जाता है तब वह और भी प्रगाढ़ हो जाता है अपनी कटु प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर ही जीवन का वास्तविक रसानंद प्राप्त हो सकता है । यह हृदय की सच्ची अनुभूति है । यहाँ पर आसाधरणत्व का कोई स्थान नहीं मन से जो पास हो वहाँ फिर दूर नहीं ।