श्याम संध्या दीप जलाए


श्याम संध्या दीप जलाए 

अस्ताचल सूर्य सागर अंक

अब विश्राम पाये 

दिन का ताप उतरा

शीतल हवा का झोंका धीरे से बह निकला

अस्फुट ध्वनि कुछ सहज हुई

निस्तब्ध शांत में एक गहन वार्ता थी

अरण्यप्रांत नदियाँ रव धीरे धीरे  

खगकुल लौटते निज बसेरे

चाँद जो निकला , उसमें अमर

प्रकाश था , ज्योतिर्मय पुँज

दीपालोक दिवा नित्य शाश्वत सदैव

जगमग उर हर्षित , चंद्र भी तो दिन

सह विराजित उसके साथ था

कैसा अब रुदन ,   जब बिछड़ा ही नहीं

कोई अपने प्रिय से ..! 





 

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