वही कृष्ण कहलाता

Krishna

प्रकीर्ण किरण चंचल झलकाता

श्यामल नीला आँचल

सरोवर के क्रोड में जीवनामृत प्यास 

प्रवाहित युगधारा

बनकर पवन सुहानी

संदेशा वह लाती

झुकी तरुवर डाली  

विनय का संदेश सुनाती

पुष्पित मन सुवासित 

नभ में छाने लगे गुलाल 

सतरंगी चुनर ब्याहता की दुलारी

एक बूँद में विश्व समाया

नजरों का रचा गया खेल सारा

कल्पना के चित्र सजे ये क्रम 

दिनरात यूँही चले

फर्क बस इतना ही बतलाता

कुछ आँखों देखा जाता

कुछ मननयनों से अपलक जुड़ जाता 

वही कृष्ण कहलाता !


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