ओ कृष्ण प्यारे
ओ कृष्ण प्यारे गोकुल के ग्वाले नंददुलारे बंसी बजाओ ,
छायी निराशा सोई निस्तब्धता अब पल प्रतिपल घनेरी
दीप आशा का फिर मन - मंदिर में जलाओ ।
मनप्राण खोए हुए है , अवरुध्द जीवन गति - लय
विकसे कमल , कमलनयन क्यों अदृश्य
दर्प में रहे बह गए सदन
निकट रहे हिये सदा हियवासी नंदन ,
करुणानिधान निर्मल चित्तवासी ,
श्याम सच्चिदानंद
बरसो प्रीत बन
जड़ता हर , धानी हरियाली चुनर लहराओ
ओ कृष्ण प्यारे , गोकुल के ग्वाले , नंददुलारे
बंसी बजाओ , बजाओ बंसी बजाओ ...।
तारक रश्मियाँ चंद्र - किरणें ओ' जमुना के तीर
महारास फिर रचाओ गाए धरा और झूमे अंबर
मिल एकरंग , काटे सारे तुच्छ मलिन बंध
एक सृष्टि एक प्राण , फिर काहे को जग बैरी - भाव
झुके गए कंधें और झुक गई रीढ़
लोभ - पाप का बोझ सर पर सवार गागर भारी
कांकर मारी , स्मित मुस्कान मनोहारी
सकल धाम में यही एक सुख प्यारा
मंद समीरा में बंसी की धुन में घुल
प्राप्य - अप्राप्य सर्वबंधन मुक्त
एक टेर में गूँजता कृष्ण बंसी स्वर
ओ कृष्ण प्यारे , गोकुल के ग्वाले नंददुलारे बंसी बजाओ
बजाओ बंसी बजाओ .... !

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