कान्हा मनमोहना बंसी बजाए

Krishna


कान्हा   मनमोहना  बंसी  बजाए  ...  मनमोहना  बंसी  बजाए 

मन  की  प्रीत  साची , समीरण  में  मिल  शीतलता

कान्हा  बंसी  का  स्वर  गूँजे - गूँजे  रहे - रहकर

मनमोहना  बंसी  बजाए ... कान्हा  मनमोहना ... बंसी  बजाए 

मौन की आभा मौन से  मिल  के  गीत  ये  सच्चे  फिर  गुनगुनाए 

भीतर  - ही - भीतर  मन के  द्वार  नयनालोक  में  छिपकर  देखे

जो अबकुछ  रहा  ना  अबकुछ  जित देखूँ  तित  तूझको  पाउँ

दुःख  में  भी  साथ  मेरे  तू  सुख  में  भी  साथ  मेरे

संबल  और  जीवन  के  आधार  भी  तुम 

तेरे  ही  हाथों  जीवन  नौका  की  अब पतवार  गिरधर

रात  अंधेरे  दीवाली  का  दीप  जब  जलता  है , मन की  कथा

सारी  कथा  अपलक  दीप  से  कहे  तुझे  सुनाती  हूँ 

कुछ  शब्द  रहे  जाते  है  अधूरे  जैसे  मेरे  स्वप्न  अधूरे

क्या  खोया  तो  क्या  पाया  , तौल - माप  सब  सौदेबाजी  

दुनियावी  मायाबाजार  में  छोड़े , मुक्त  श्याम  सरोवर  में  एक 

पुष्प  खिला  मृदु ...  कोमल  ... प्रेम  से  पूरित 

तट  किनारे  बैठे  श्यामश्यामल  दिनरात बंसी  देती  सुप्रिय  

मधुरिम तान  जीवन  को  कहे  सबको  सुनाती  ...  

कान्हा  मनमोहना  बंसी  बजाए  ...  मनमोहना  बंसी  बजाए ...!

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