प्रिय नयन निहारे


श्याम वेशधारी

रजत अ.. घुतिमान

चंद्रप्रभा शोभा

हे हिमांशु निशा में

विचरते उजियारे

शीतल सम शांत फुहारें

ओस बूँद तुषारे

ज्यों करुणा का प्रेम मुदित

रिलमिल- झिलमिल 

मोती बरसा

जनम - जनम के पार 

बीता युग - युग का मेला

स्वप्न सा क्षणिक अब

भाव में डोला

निस्तब्ध मुख पे

एक स्मित मुस्कान 

सीधा सरल सहज संवाद 

क्यों ? रहता मौन सदा

चकवा - चकवी की हा ! करुण कथा

देती मुझको अनुकूल  

घने अंधेरे ज्योति बाती

अभयदान , विक्षिप्त आते- जाते

ध्रुव नयन टिके अपलक

प्रिय नयन निहारे

आओ कृष्ण गोकुल वृंदावन 

निज अश्रु से चरणकमल पखारे !


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