संदेश

प्रिय नयन निहारे

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श्याम वेशधारी रजत अ.. घुतिमान चंद्रप्रभा शोभा हे हिमांशु निशा में विचरते उजियारे शीतल सम शांत फुहारें ओस बूँद तुषारे ज्यों करुणा का प्रेम मुदित रिलमिल- झिलमिल  मोती बरसा

श्याम संध्या दीप जलाए

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श्याम संध्या दीप जलाए  अस्ताचल सूर्य सागर अंक अब विश्राम पाये  दिन का ताप उतरा शीतल हवा का झोंका धीरे से बह निकला अस्फुट ध्वनि कुछ सहज हुई निस्तब्ध शांत में एक गहन वार्ता थी

मेरे मन तुम राधे - राधे जपा करो

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उदास  न  रहा  करो  ,  मेरे  मन  तुम  राधे - राधे  जपा  करो । इधर - उधर  व्यर्थ  न  जग  में   भटका  करो , मेरे  मन  तुम  सदा  श्रीचरणों  में  रहा  करो  ।। न  लोभ   ईर्ष्या  कोई  ,  न  कटुता  में   रहा  करो  मेरी  जिह्वा  तुम मिश्री  से  मीठा  नाम  राधे - राधे  बोला  करो ।।

शरद पूर्णिमा का चाँद

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शरद पूर्णिमा का चाँद  उतरी चाँदनी सागर तल में धीरे - धीरे प्रशांत जल में समाती शुभता का रुप कोई  श्वेत चंदन वर्ण गमक उठी भावों की महक निज मन की फुलवारी सघन निविड़ के अंधियारे में ओट लिए  राग यमन का गान गुँजन करता चंचल मन के तार  देख दृश्य पार मोती का रंग एक आकार गोल कुंदक - सा चन्द्रमा

वही कृष्ण कहलाता

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प्रकीर्ण किरण चंचल झलकाता श्यामल नीला आँचल सरोवर के क्रोड में जीवनामृत प्यास  प्रवाहित युगधारा बनकर पवन सुहानी संदेशा वह लाती झुकी तरुवर डाली   विनय का संदेश सुनाती
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जीवन बेला सुवास सुरभित  दुर्दम में भी जिजीविषा अदम्य  शुष्क उछाहों में सदैव  अपनी मृदुल भावना से पूरित  प्रसारित करता  भीनी - भीनी

ओ कृष्ण प्यारे

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ओ  कृष्ण  प्यारे  गोकुल  के  ग्वाले  नंददुलारे  बंसी  बजाओ ,  छायी  निराशा  सोई   निस्तब्धता  अब  पल प्रतिपल  घनेरी  दीप   आशा   का   फिर   मन -  मंदिर   में   जलाओ । मनप्राण   खोए    हुए   है  ,  अवरुध्द   जीवन  गति -  लय विकसे   कमल  ,   कमलनयन   क्यों   अदृश्य

कान्हा मनमोहना बंसी बजाए

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कान्हा   मनमोहना  बंसी  बजाए  ...  मनमोहना  बंसी  बजाए  मन  की  प्रीत  साची , समीरण  में  मिल  शीतलता कान्हा  बंसी  का  स्वर  गूँजे - गूँजे  रहे - रहकर