अखंड अमर सौभाग्य सिंदूर

Radhaa-krishnaa


बेअटके सवालों में खो गए उत्तर सख्त दीवारों में

घड़ी की टकटक खामोशी को ओर भी रह - रहकर 

गंभीर गहन बनाए 

कौन खाली बाँस को इस योग्य बनाए 

कौन फिर एक बार बंसी मीठी बजाए

कान्हा तुम गोकुल को क्यों छोड़ गए ?

हे उध्दव ! तुम जानो बस इतना

जो हमें इस तप्त भूमि पर छोड़ गए 

वे हमारी श्वास के आधारी हमारे साथ 

श्वास बन उर में रहते है , उन्हीं से

ये धरा आवृत्त है , जाओ यह न पकने

वाली उनकी दाल उस छलिये को समझाओ 

जो करन ठिठोरी भेजो तुमको जरको न

लाज शर्म आए ।

साँवरा काजल बन हमारे मन नयनों में समाए

वह कृष्ण ...  कहइ  दइयो , वह भूलाए हम न भूलाए

तुम निभाओ अपना धर्म , हम न रोकेंगे

हमारे पास तो है हमारे माथ पर सजा   

अखंड अमर सौभाग्य का सिंदूर उनका दिया ।


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