अखंड अमर सौभाग्य सिंदूर
बेअटके सवालों में खो गए उत्तर सख्त दीवारों में
घड़ी की टकटक खामोशी को ओर भी रह - रहकर
गंभीर गहन बनाए
कौन खाली बाँस को इस योग्य बनाए
कौन फिर एक बार बंसी मीठी बजाए
कान्हा तुम गोकुल को क्यों छोड़ गए ?
हे उध्दव ! तुम जानो बस इतना
जो हमें इस तप्त भूमि पर छोड़ गए
वे हमारी श्वास के आधारी हमारे साथ
श्वास बन उर में रहते है , उन्हीं से
ये धरा आवृत्त है , जाओ यह न पकने
वाली उनकी दाल उस छलिये को समझाओ
जो करन ठिठोरी भेजो तुमको जरको न
लाज शर्म आए ।
साँवरा काजल बन हमारे मन नयनों में समाए
वह कृष्ण ... कहइ दइयो , वह भूलाए हम न भूलाए
तुम निभाओ अपना धर्म , हम न रोकेंगे
हमारे पास तो है हमारे माथ पर सजा
अखंड अमर सौभाग्य का सिंदूर उनका दिया ।

सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीदी !
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
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